118 साल के बाद देखने को मिला इस दुर्लभ प्रजाति का फूल

By: Ankur Sun, 19 July 2020 6:25:03

118 साल के बाद देखने को मिला इस दुर्लभ प्रजाति का फूल

अक्सर कई घटनाएं ऐसी होती हैं जो अचानक से घटित होती हैं और उनके होने का कोई अंदेशा भी नहीं होता हैं तो वे हैरान कर देती हैं। ऐसा ही कुछ देखने को मिला दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगल में जहाँ 118 साल के बाद दुर्लभ प्रजाति का फूल देखने को मिला है जिसकी किसी को भी आशा नहीं थी। दुधवा टाइगर रिजर्व टीम ने एक दुलर्भ प्रजाति का पौधा ‘ग्राउंड आर्किड’ खोजा है। करीब 118 साल बाद दुधवा के जंगल में आर्किड के पौधे पर फूल खिला हुआ देखने को मिला है। इसके साथ ही इस दुर्लभ प्रजाति के पौधे में फल भी आ रहे हैं। आर्किड के पौधे को देखकर वन विभाग के अधिकारी बहुत खुश हैं।

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दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि जंगल के अलग-अलग क्षेत्रों में घास के मैदानों का अध्ययन करते समय एक दुर्लभ प्रजाति का पौधा दिखाई दिया। इस पौधे को और उसमें लगे फूलों को देखकर संजय ने फोटो ली और उसके बारे में पता लगाना शुरू कर दिया। संजय पाठक के मुताबिक, इस दुर्लभ वनस्पति को आमतौर पर ग्राउंड आर्किड के नाम से जाना जाता है, जिसका वानस्पतिक नाम यूलोफिया ऑब्ट्यूसा है।

आर्किड के पौधे को करीब 118 साल पहले यानी साल 1902 में देखा गया था, जिसके बाद साल 2020 में इसके दर्शन हुए हैं। दुधवा टाइगर रिजर्व के लिए यह एक शुभ संकेत है। मुख्य तौर पर यह पौधा पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। उत्तराखंड, सिक्किम, दार्जलिंग या गुवाहटी के पहाड़ियों पर यह पौधा मिलता है।

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संजय पाठक ने बताया कि आर्किड का पौधा पीलीभीत जिले में भी पाया गया था। अब यह दुधवा में भी पाया गया है। दुधवा के लिए यह बहुत ही सुखद खबर है कि ये पौधा यहां काफी संख्या में पाया गया है। 1 जुलाई को घास के मैदानों का अध्ययन करते समय, जब हमने इस पौधे को देखा तो थोड़ा आश्चर्य हुआ। इसके बाद हमने इस पौधे की फोटो ली और इसके बारे में जानकारी जुटाई।

इस दुर्लभ प्रजाति के पौधे को मिलने के बाद संजय पाठक ने उत्तर-दक्षिण विश्वविद्यालय ढाका (बांग्लादेश) के वनस्पति शास्त्री मोहम्मद शरीफ हुसैन सौरभ से जब बात की तो उन्होंने खुशी जाहिर की। उन्होंने बताया कि इस दुर्लभ प्रजाति का रिकार्ड पिछले 100 साल से अधिक समय से देखने को नहीं मिला है। मोहम्मद शरीफ हुसैन सौरभ ने बताया कि आखिरी बार साल 2014 में इस पौधे को बांग्लादेश में आखिरी बार देखा गया था।

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